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Sunday, July 11, 2010

वो आँखें

नहीं भूलतीं वो आँखें !

मुझे छेडतीं, मुझे लुभातीं,
सखियों संग उपहास उड़ातीं,
नटखट, भोली, कमसिन आँखें !

हर पल मेरा पीछा करतीं,
नैनों में ही बाँधे रहतीं,
चंचल, चपल, विहँसती आँखें !

मुझे ढूँढतीं, मुझे निरखतीं,
मुझे देख कर खिल-खिल उठतीं,
इंतज़ार में व्याकुल आँखें !

मुझ पर फिर अनुराग जतातीं,
कभी रूठतीं, कभी मनातीं,
स्नेह भार से बोझिल आँखें !

प्रथम प्रणय के प्रथम निवेदन
पर लज्जा से सिहर-सिहर कर
सकुचाती, शर्माती आँखें !

कभी बरजतीं, कभी टोकतीं,
कभी मानतीं, कभी रोकतीं,
मर्यादा में सिमटी आँखें !

विरह व्यथा से अकुला जातीं,
बात-बात में कुम्हला जातीं,
नैनन नीर बहाती आँखें !

पर पीड़ा से भर-भर आतीं,
चितवन से ही सहला जातीं,
करुणा कलश लुटाती आँखें !

जिनके भावों में भाषा है,
जिनकी भाषा में कविता है,
मौन, मुखर, मतवाली आँखें !

जिनमें रह कर जीना सीखा,
जिनमें बह कर तरना सीखा,
अंतर पावन करती आँखें !


साधना वैद

10 comments :

  1. जिनमें रह कर जीना सीखा,
    जिनमें बह कर तरना सीखा,
    अंतर पावन करती आँखें !


    -बहुत सुन्दर!!

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  2. जिनके भावों में भाषा है,
    जिनकी भाषा में कविता है,
    मौन, मुखर, मतवाली आँखें !
    आँखों को खूबसूरती से बयाँ किया है आपने
    बहुत सुन्दर

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  3. जिनके भावों में भाषा है,
    जिनकी भाषा में कविता है,
    मौन, मुखर, मतवाली आँखें !

    जिनमें रह कर जीना सीखा,
    जिनमें बह कर तरना सीखा,
    अंतर पावन करती आँखें !


    बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति

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  4. "मुझ पर फिर अनुराग --------स्नेह भर से बोझिल आँखें " बहुत सुन्दर लिखा है |बधाई
    आशा

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  5. जिनके भावों में भाषा है,
    जिनकी भाषा में कविता है,
    मौन, मुखर, मतवाली आँखें !

    ...बहुत अच्छी रचना

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  6. सच कहा है किसी ने ये आँखे तेरे मन की जुबान हैं...बिलकुल सच और सुंदर शब्दों के मोतियों से सजी सुंदर कविता.

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  7. कैसे भूली जाती ऐसी ऑंखें ...
    इन पर मैंने भी लिखी थी एक कविता ...!

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  8. जिनमें रह कर जीना सीखा,
    जिनमें बह कर तरना सीखा,

    जिनके भावों में भाषा है,
    जिनकी भाषा में कविता है,
    बहुत खूबसूरेअत कविता मृगनयनी की तरह। बधाई।

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  9. वाह खूब "आंखें" दिखाईं आपने तो!!! :) सुन्दर कविता.

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  10. सच है आँखें भी तो बोलती हैं ... अलग अलग भाषा ...
    तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है ...

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