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Tuesday, September 14, 2010

* कस्तूरी-मृग * भाग २

अभी तक आपने पढ़ा –
शिखा बाज़ार से लौटी है ! घर पर सब उसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं खाने की मेज़ पर ! लेकिन वह माँ से खाने के लिए मना कर अनमनी सी ऊपर चली जाती है ! शिखा की भाभी रचना उससे बात करना चाहती है ! शिखा भी रचना से बात करना चाहती है क्योंकि वह भी अपनी हर समस्या के समाधान के लिए रचना पर ही निर्भर रहती है ! वह रचना से काम समाप्त कर ऊपर आने के लिए कहती है !
अब आगे ----
रेडीमेड कपड़ों की दूकान पर पुरानी सहपाठिनी सरोज से एक छोटी सी मुलाक़ात ने शिखा के शांत मन में आज उथल-पुथल मचा दी थी ! शिखा अपने बेटे वरुण के लिए एक टी शर्ट खरीदने गयी थी ! बजट उसका बहुत सीमित था और सेल्समैन टी शर्ट्स बहुत मँहगे-मँहगे दिखा रहा था ! जो उसे पसंद आतीं वह बजट से बाहर जा रही थीं और जो पर्स की सीमा में फिट बैठ रही थीं उनका कपड़ा बहुत मामूली सा था या डिजाइन आकर्षक नहीं थे ! सेल्समैन भी कपड़े दिखा-दिखा कर अब ऊब चुका था ! शिखा ने महसूस किया था कि अब उसकी बनावटी विनम्रता भी उसकी खीझ को छिपा नहीं पा रही थी ! शिखा भी बहुत असहज सी हो रही थी ! इस अप्रिय स्थिति से उबरने के लिए उसने जल्दी से 35 रुपये की एक टी शर्ट ही पसंद कर ली ताकि वह जल्दी से इस दूकान से बाहर निकल सके ! पेमेंट करने के लिए उसने पर्स खोला ही था कि एक शानदार शेवरलेट कार दूकान के सामने आकर रुकी ! कार से उतर कर एक गरिमामय संभ्रांत महिला ने दूकान में प्रवेश किया ! महिला के साथ एक आया थी जो शायद उनके बेटे को गोद में लिए थी ! महिला के प्रवेश के साथ ही दूकान में मिलिट्री अनुशासन सा माहौल व्याप्त हो गया !
" आइये मैडम आइये ! बड़े भाग्य ! आज तो आपने बड़े दिनों में दर्शन दिए ! “ बही खाते का हिसाब-किताब छोड़ दूकान का मालिक दोनों हाथ जोड़े अत्यंत विनीत मुद्रा में मैडम जी की अभ्यर्थना में व्यस्त हो गया ! सारे कर्मचारी सावधान की मुद्रा में आ गए ! एक कर्मचारी आगंतुका के स्वागत में दौड़ कर ट्रे में ठन्डे पानी के दो गिलास ले आया ! शिखा से पेमेंट लेने की इस समय किसी को फुर्सत नहीं थी ! उपेक्षित सी हो उसने हाथ में पकड़े रुपये पुन: पर्स में रख लिए !
“ कुछ अच्छे से सूट दिखाओ बाबा के लिए ! “ मैडम ने पानी का खाली गिलास ट्रे में रखते हुए आया की गोद में सवार अपने पुत्र की ओर संकेत किया ! सेल्समैन काउंटर पर फैले उन्हीं कपड़ों में से कुछ दिखाने का उपक्रम कर ही रहा था कि हाथ से सारे कपड़ों को एक ओर सरका दूकान के मालिक ने आँखों ही आँखों में उसे तरेर कर घुड़का और ऊपर से मुस्कुराते हुए बड़ी मीठी आवाज़ में सलाह की एक गाँठ थमा दी, “ ग्राहक को देख कर माल दिखाया कर बेटा ! जा अंदर से नया माल लेकर आ ! “ व्यस्त भाव से दो तीन लड़के अंदर घुस गए और बच्चों के कपड़ों के कई डिब्बे लेकर बाहर आये ! दूकान का मालिक अब खुद मैडम को कपड़े दिखा रहा था !
“ देखिये मैडम ! एकदम फ्रेश माल है ! कल ही आया है ! पहली बार आपके लिए ही गाँठ खुलवाई है ! “
दूकानदार की बातों ने शिखा को अपदस्थ कर दिया था ! वह बहुत संकुचित हो उठी थी ! जल्दी से पेमेंट कर वह वहाँ से निकल जाना चाहती थी, “ आप जल्दी से पेमेंट ले लीजिए ! मुझे देर हो रही है ! “ वह कुछ झल्ला कर बोली !
“ बस एक मिनिट बहनजी ! “ की टालमटोल वाली शब्दावली शिखा की ओर उछाल दूकान का मालिक पुन: ऊँचे दामों वाले फ्रेश माल की प्रदर्शिनी और अपने वाक्चातुर्य से मैडम को प्रभावित करने में व्यस्त हो गया !
तभी आया की गोद से उछल कर मैडम के नन्हे से शिशु ने वरुण के बाल कस कर पकड़ लिए ! “आई मम्मी “ वरुण की करूण पुकार सुन शिखा का ध्यान अपने बेटे की ओर गया ! शिखा बेहद झुँझला गयी थी ! फिर भी उसने धैर्य रख कर धीरे से बच्चे की मुट्ठी से वरुण के बाल छुड़ाये और घूर कर आया को आँखों ही आँखों में झिड़का !
“ सॉरी मैडम ! “ आया अपनी असावधानी पर शर्मिन्दा सी थी ! इस सारे हंगामे की वजह से मैडम का ध्यान अब शिखा की ओर आकृष्ट हुआ ! दोनों की दृष्टि मिली और दोनों ही जैसे एक दूसरे के चेहरे पर भूली बिसरी पहचान के चिन्ह ढूँढने में जुट गयीं !
“ तुम ... तुम शिखा हो ना ? “ मैडम ने शिखा की ओर उत्सुकता से निहारा !
“ और तुम ..... आप सरोज हैं ना ? “ परिचय अपरिचय के असमंजस में डूबी शिखा के मुख से निकला ! अब दुकानदार भी इस लघु नाटिका में रस लेने लगा था !
“ आप दोनों क्या एक दूसरे को जानती हैं ? " शिखा को मैडम का परिचय देते हुए उसने बताया , “ आप हैं श्रीमती सरोज वर्मा ! यहाँ की ए डी एम ! " लेकिन दोनों ने जैसे उसकी बातों को सुना ही नहीं ! कुछ देर पहले जो शिखा क्षोभ, कुंठा और झुँझलाहट से ग्रस्त वहाँ से जल्दी से जल्दी निकल जाने के लिए व्याकुल थी अब बच्चों की तरह उल्लसित हो सरोज को दोनों हाथों से पकड़ खुशी के मारे झकझोर रही थी !
“ तुम कितनी बदल गयी हो ! मैं कैसे पहचानती तुम्हें ? घर चलो ना ! माँ तुम्हें देख कर कितनी खुश होंगी ! “ वह कहे जा रही थी !
“ नहीं शिखा आज नहीं ! फिर किसी दिन आऊँगी ! ये क्लब जाने के लिए मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे ! आज वहाँ फ्लावर शो का प्राइज़ डिस्ट्रीब्यूशन है ! मुझे ही चीफ गेस्ट बनाया है ! वहाँ तो जाना ही पड़ेगा ! और तुम सुनाओ क्या कर रही हो आजकल ? “
अचानक शिखा फिर संकुचित हो उठी थी, “ कुछ नहीं सरोज घर गृहस्थी सम्हाल रही हूँ ! इन्हें महिलाओं का नौकरी करना पसंद ही नहीं है इसलिए अपने आप को घर तक ही सीमित कर लिया है ! “ शिखा की आवाज़ में मायूसी और क्षोभ के स्वर प्रतिध्वनित हो रहे थे ! लेकिन तुरंत ही सायास अपनी उदासी की गर्त से बाहर निकल हँसते हुए उसने सरोज से पूछा, “ और अपने बैच की बाकी सहेलियों के बारे में भी कुछ पता है ? कहाँ हैं वे सब ? शिवानी, रूपा, पारुल, कविता, निर्मला ? मेरी शादी तो सबसे पहले ही हो गयी थी ! फिर किसी से मिलना ही नहीं हुआ ! “
“ शिवानी तो होशंगाबाद में लेबर जज है आजकल ! रूपा डिग्री कॉलेज में लेक्चरर हो गयी है ! पारुल शादी के बाद स्टेट्स चली गयी अपने हसबैंड के साथ ! कविता ने अपना ब्यूटी पार्लर खोल लिया है ! और निर्मला फैशन डिजाइनर का डिप्लोमा कर यहीं पर अपना बुटीक चला रही है ! सभी कुछ न कुछ कर रही हैं ! तुम भी कुछ कर डालो ना ! दिन भर घर में वही नीरस काम धन्धे करते-करते बोर नहीं हो जातीं तुम?” दोनों सहेलियां बातों में तल्लीन अपने आस पास के परिवेश को जैसे भूल ही गयी थीं ! मौके का फायदा उठा दुकानदार ने उन दोनों के लिए कोल्ड ड्रिंक्स मँगवा ली, “ लीजिए ना मैडम ! कुछ ठंडा ले लीजिए ! आज गर्मी बहुत है ! “
शिखा तुरंत ही यथार्थ के धरातल पर उतर आई थी ! यह स्वागत ए डी एम साहिबा का हो रहा था उसका नहीं ! उसने शालीनतापूर्वक मना करते हुए चलने का उपक्रम किया, “ आप पेमेंट ले लीजिए ! मैं अब चलूँगी ! अच्छा सरोज घर पर आना ! “
“ ठहरो शिखा मैं भी चल रही हूँ ! मैं तुम्हें तुम्हारे घर पर ड्रॉप कर दूँगी ! “
“ नहीं सरोज मुझे अभी कहीं और भी जाना है ! अभी तो मैं कुछ दिन और हूँ यहाँ ! फिर मिलेंगे ! “
दोनों साथ ही पेमेंट के लिए काउंटर पर पहुँचीं ! सरोज के 800 रुपये के बिल के आगे अपना नगण्य सा 35 रुपये का बिल एक बार फिर से उसे अनावृत कर गया था ! और फिर वरुण का हाथ थाम दूकान की सीढियाँ उतरने के बाद शिखा ने एक बार भी पीछे मुड़ कर नहीं देखा !
क्रमश:

8 comments :

  1. रोचक प्रसंग। अगली कड़ी का इंतज़ार।


    मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज़्ज़त करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिन्दी की इज़्ज़त न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे
    भारतेंदु और द्विवेदी ने हिन्दी की जड़ें पताल तक पहुँचा दी हैं। उन्हें उखाड़ने का दुस्साहस निश्‍चय ही भूकंप समान होगा। - शिवपूजन सहाय
    हिंदी और अर्थव्यवस्था-2, राजभाषा हिन्दी पर अरुण राय की प्रस्तुति, पधारें

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  2. रोचक लग रही है कहानी। अगली कडी का इन्तजार। शुभकामनायें।

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  3. kahani acchi tarah bandhe hue hai...agali kadi ki pratiksha main hun

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  4. kuch der ke liye lagta to hai, per khuddari nazar aati hai

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  5. बहुत रोचक ..यही विसंगतियाँ स्त्रियों को कहीं न कहीं कचोट जाती हैं ...

    अब आगे ?

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  6. बड़ी सूक्ष्मता से शिखा के मनोभावों को व्यक्त किया है...कहानी बहुत रोचक लग रही है...अगली कड़ी का इंतज़ार

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  7. कहानी इन्तजार कर के क्यूँ पढवा रही हो ,क्यूँ इस तरह धेर्य की परीक्षा ले रही हो |अच्छे लेखन के लिए बधाई
    आशा

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  8. पूरी कहानी एक ही सांस में पढ़ गई | बहुत अच्छी लगी|मुझसे इंतज़ार नहींहोता है

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