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Wednesday, April 28, 2010

मेरी बिटिया

प्यारी बिटिया मुझको तेरा ‘मम्मा-मम्मा’ भाता है,
तेरी मीठी बातों से मेरा हर पल हर्षाता है !

दिन भर तेरी धमाचौकड़ी, दीदी से झगड़ा करना,
बात-बात पर रोना धोना, बिना बात रूठे रहना,
मेरा माथा बहुत घुमाते, गुस्सा मुझको आता है,
लेकिन तेरा रोना सुन कर मन मेरा अकुलाता है !

फिर आकर तू गले लिपट सारा गुस्सा हर लेती है,
अपने दोनों हाथों में मेरा चेहरा भर लेती है,
गालों पर पप्पी देकर तू मुझे मनाने आती है,
‘सॉरी-सॉरी’ कह कर मुझको बातों से बहलाती है !

उलटे-पुलटे बोलों में हर गाना जब तू गाती है ,
सबके मुख पर सहज हँसी की छटा बिखर सी जाती है,
तेरी चंचलता, भोलापन और निराला नटखटपन,
मेरे सुख की अतुल निधी हैं, देते हैं मुझको जीवन !

मेरी प्यारी, राजदुलारी, भोली सी गुड़िया रानी,
सारी दुनिया भर में तुझ सा नहीं दूसरा है सानी,
मेरे घर आँगन की शोभा, मेरी बगिया का तू फूल,
तेरे पथ में पुष्प बिछा कर मैं समेट लूँ सारे शूल !

मेरी नन्ही बेटी तू मेरी आँखों का नूर है,
मेरे जीवन की ज्योती, तू इस जन्नत की हूर है,
तुझ पर मेरी सारी खुशियाँ, हर दौलत कुर्बान है,
मेरी रानी बिटिया तू अपनी ‘मम्मा’ की जान है !

साधना

Monday, April 26, 2010

मौन

मेरे मौन को तुम मत कुरेदो !
यह मौन जिसे मैंने धारण किया है
दरअसल मेरा कम और
तुम्हारा ही रक्षा कवच अधिक है !
इसे ऐसे ही अछूता रहने दो
वरना जिस दिन भी
इस अभेद्य कवच को
तुम बेधना चाहोगे
मेरे मन की प्रत्यंचा से
छूटने को आतुर
उलाहनों उपालम्भों
आरोपों प्रत्यारोपों के
तीक्ष्ण बाणों की बौछार
तुम सह नहीं पाओगे !
मेरे मौन के इस परदे को
ऐसे ही पड़ा रहने दो
दरअसल यह पर्दा
मेरी बदसूरती के
अप्रिय प्रसंगों से कहीं अधिक
तुम्हारी मानसिक विपन्नता की
उन बदरंग तस्वीरों को छुपाता है
जो उजागर हो गयीं
तो तुम्हारी कलई खुल जायेगी
और तुम उसे भी कहाँ
बर्दाश्त कर पाओगे !
मेरे मौन के इस उद्दाम आवेग को
मेरे मन की इस
छिद्रविहीन सुदृढ़ थैली में
इसी तरह निरुद्ध रहने दो
वगरना जिस भी किसी दिन
इसका मुँह खुल जाएगा
मेरे आँसुओं की प्रगल्भ,
निर्बाध, तूफानी बाढ़
मर्यादा के सारे तट बंधों को
तोड़ती बह निकलेगी
और उसके साथ तुम्हारे
भूत भविष्य वर्त्तमान
सब बह जायेंगे और
शेष रह जाएगा
विध्वंस की कथा सुनाता
एक विप्लवकारी सन्नाटा
जो समय की धरा पर
ऐसे बदसूरत निशाँ छोड़ जाएगा
जिन्हें किसी भी अमृत वृष्टि से
धोया नहीं जा सकेगा !
इसीलिये कहती हूँ
मेरा यह मौन
मेरा कम और तुम्हारा
रक्षा कवच अधिक है
इसे तुम ना कुरेदो
तो ही अच्छा है !


साधना वैद

Thursday, April 22, 2010

तुम्हारे लिये

ना जाने कितने
अमलतास,
गुलमोहर,
पलाश
खिल खिल कर
बिखर गए लेकिन
मेरे प्यार की एक कली
तुम्हारे उपवन की
किसी डाल पर
नहीं खिल पाई !
ना जाने कितने
आसावरी,
बागेश्री,
भैरवी
की मधुर बंदिशों में
सजे तुम्हारी
वन्दना के लिये
अर्पित भाव गीत
दिग्दिगंत में
ध्वनित
प्रतिध्वनित हो
मौन हो गए
लेकिन उनकी
आकुल पुकार
तुम तक
नहीं पहुँच पाई !
ना जाने कितने
समर्पण,
श्रद्धा,
भक्ति
जैसे अनन्य भावों के
दीप जला कर
तुम्हारी आराधना के लिये
मैं थाल संजोती रही
लेकिन
उस अर्ध्य की
उपेक्षा कर तुम
ना जाने कहाँ
उठ कर
चल दिये !
मेरे मन में
वो अनखिली कलियाँ
आज भी अंकुरित हैं,
वो मौन हो चुके
अनसुने भाव गीत
आज भी गूँज रहे हैं,
थाल में संजोये
वो उपेक्षित दीप
आज भी उसी तरह से
प्रज्वलित हैं
लेकिन
अब मुझे तुम्हारी
प्रतीक्षा नहीं है !
एक बार फिर
इनका निरादर करने
तुम ना आना !
यह सारा प्रसाद
अब मैंने
उन सबके साथ
साझा कर लिया है
जो स्वयम
भगवान तो नहीं
लेकिन
जिनके मन में
भगवान ज़रूर बसते हैं !

साधना

Friday, April 16, 2010

किसीको माया किसीका मरण

कल १४ अप्रेल के दैनिक जागरण के मुख पृष्ठ के कॉलम न.१ में एक रोचक समाचार पढने को मिला कि “मायावती की प्रतिमा टॉप टेन कुरूप प्रतिमाओं में शुमार” ! अमेरिका की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘फॉरेन पॉलिसी’ ने दुनिया की सबसे कुरूप ११ प्रतिमाओं की सूची जारी की है जिसमें उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती की प्रतिमा भी छठवें स्थान पर शामिल है ! प्रतिमा की फोटो के ऊपर शीर्षक में लिखा है “जब बुरी कला और स्तरहीन राजनीति का मिलन होता है” ! पत्रिका ने यह भी लिखा है कि मायावती की ‘दलितों की मसीहा’ के तौर पर जानी जाने वाली छवि को गत वर्ष उस समय धक्का लगा जब सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें लोक निधि से ४२ करोड ५० लाख अमेरिकी डॉलर ( करीब १८ अरब रुपये ) खर्च कर खुद की और दूसरे लोकप्रिय दलित नेताओं की मूर्ति निर्माण के लिये फटकार लगाई ! आज के समाचार पत्र में मायावती जी का यह कथन भी उद्धृत है कि “इन स्थलों व स्मारकों का किसी भी स्तर पर कितना ही विरोध क्यों न हो हमारी पार्टी और सरकार तिल भर भी नहीं झुकने वाली !” कल अम्बेडकर शोभा यात्रा के दौरान जुलूस में एक ऐसी झाँकी भी थी जिसमें श्रीमती सोनिया गाँधी व श्री लाल कृष्ण आडवानी को नोटों के हार पहने हुए तथा श्री अटल बिहारी बाजपेयी को चाँदी का मुकुट पहने हुए तस्वीरों में दिखाया गया था साथ ही मायावती ५ करोड मूल्य के नोटों का हार पहने कह रही हैं, “ जब ये सब पहन सकते हैं तो मैं क्यों नहीं ?”
उपरोक्त उद्धृत बातों से यह तो साफ़ हो गया है कि हमारे देश में किस तरह के नेता हैं और राजनीति के फलक पर किस स्तर की राजनीति हो रही है ! अरबों रुपयों की मूर्तियां और पार्क बनाने वाले और करोड़ों रुपयों के हार से अपना अभिनन्दन करवाने वाले नेताओं को क्या इस बात का आभास है कि बाज़ार में आम इंसान गेहूँ का आटा २२/-रुपये किलो खरीद रहा है, और चीनी की कीमत ४०/- रुपये किलो हो गयी है, दालें १००/- रुपये किलो मिल रही हैं और सब्जियों के दाम आसमान को छू रहे हैं ? उन्हें तो कई तरह के पकवान टेबिल पर सजे हुए मिलते हैं ! रसोई की तरफ रुख करने की उन्हें ज़रूरत ही कहाँ होती है ! आम इंसानों की तरह कभी बाज़ार जाकर उन्हें सामान खरीदने की आवश्यकता ही नहीं होती ! उन्हें कभी इस दुविधा से नहीं गुजरना पडता कि इस महीने बिना दालों के ही राशन का सामान खरीद लिया जाए या दूध और चीनी की बढती हुई कीमतों को देखते हुए इस माह से बच्चों को दो बार की जगह एक बार ही दूध दिया जाए या फिर उन्हें दूध की जगह चाय पिलाना शुरू किया जाए ! और यह सब इसलिए नहीं हो रहा है कि नेताओं के भाग्य में छप्पन भोग और आम आदमी के भाग्य में किल्लतें ऊपर वाले ने लिख दी हैं, यह सिर्फ और सिर्फ इसलिए हो रहा है कि हमारे नेता जनता की दिक्कतों, उसकी परेशानियों और उसकी ज़रूरतों से बेखबर अपने महिमा मन्डन, अभिनन्दन और अपने अहम की तुष्टि के लिये हमारे द्वारा टैक्स के रूप में दी गयी राशि का मनमाने तौर पर दुरुपयोग करने में लगे हुए हैं और नित नए नए टैक्स लगा कर आम जनता को निचोड़ रहे हैं !
मँहगाई का यह आलम है कि सुरसा की तरह उसका मुँह खुला हुआ है और उस पर कोई लगाम नहीं है ! सरकारी गोदामों में टनों गेहूँ सड़ रहा है लेकिन गरीब आदमी आधा पेट खाकर सो रहा है ! सस्ते दामों पर चीनी का संग्रहण निर्यात के लिये सरकार द्वारा किया जा रहा है लेकिन घरेलू बाज़ार में आम जनता को मंहगे दामों पर चीनी खरीदनी पड रही है ! पिछले दो वर्ष में खाने पीने के सामान की कीमतों में दोगुनी वृद्धि हुई है लेकिन आमदनी वहीं की वहीं है ! इसके लिये कौन उत्तरदायी है ? क्या जनता को यह जानने का अधिकार नहीं है कि जब अपने अस्तित्व के लिये आम आदमी को इतनी जद्दोजहद करनी पड रही है ऐसे में सरकार उसीसे उगाहे रुपयों का इस तरह दुरुपयोग किस नैतिक आधार पर कर रही है ? आम जनता जब बच्चों के मुँह के निवाले गिन रही है हमारे देश के नेता एक दूसरे की मालाओं में पिरोये गए करोड़ों के नोट गिनने में व्यस्त हैं ! क्या इसी स्वराज का सपना गांधीजी ने देखा था ! एक नेता वो थे जिन्होंने अपना सर्वस्व देश पर न्यौछावर कर दिया एक आज के नेता हैं जो जितना अधिक से अधिक बटोर सकते हैं देश वासियों को और देश के संसाधनों को निचोड़ कर अपना घर और बैंक एकाउंट्स भर रहे हैं ! जैसी अराजकता और भ्रष्टाचार हमारे देश में व्याप्त है क्या अन्य किसी और देश में ऐसा है ? सरकार की पारदर्शिता कहाँ है ? सरकार की इन असामाजिक नीतियों पर किसका अंकुश होना चाहिए ? और अंकुश लगाने वाली वह व्यवस्था कहाँ सोई पड़ी है ? जनता के इन सवालों का जवाब कौन देगा ?
है पत्थरों की नगरी पत्थर के बुत जहाँ हैं !
उनको लगाने वाले वो संगदिल कहाँ हैं ?
ये कैसा न्याय दाता जाएँ कहाँ शरण में
मिलती किसीको माया जीता कोई मरण में !


साधना वैद

Wednesday, April 14, 2010

गरिमा खोता धारावाहिक ‘बालिका वधू’

एक अत्यंत सम्वेदनशील, लोकप्रिय एवं गम्भीर सामाजिक समस्या को बड़ी ईमानदारी से उठाने वाले धारावाहिक ‘बालिका वधू’ का इस प्रकार पतन होगा और वह भी टी. आर. पी की दौड में इस तरह अपने लक्ष्य से भटक कर बेसुरा हो जाएगा यह आशातीत था !
लगभग दो वर्ष पूर्व जब सारे चैनल्स सास बहू के षड्यंत्रों से भरपूर बेहद कुरुचिपूर्ण धारावाहिक प्रसारित करने में व्यस्त थे तब एक नए चैनल कलर्स ने ‘बालिका वधू’ और ‘श्रीकृष्ण’ जैसे उच्च कोटि के धारावाहिक प्रसारित कर ना केवल अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की बल्कि सामाजिक सरोकारों के प्रति अपनी ईमानदार प्रतिबद्धता का भी परिचय दिया और बहुत जल्दी ही यह चैनल लोकप्रियता के सारे सोपान चढ़ शिखर पर जा पहुँचा !
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में बाल विवाह की कुप्रथा आज भी प्रचलन में है और इसके गम्भीर दुष्परिणामों से बेखबर हमारे ग्रामवासी अभी भी इन सड़ी गली परम्पराओं से स्वयं को मुक्त नहीं कर पा रहे हैं ! ऐसे में सामाजिक चेतना को जागृत कर नवोदय की ओर कदम बढ़ाने की प्रेरणा देता यह धारावाहिक तपती लू के थपेडों के बीच मलय पवन के सुखद शीतल झोंके की तरह प्रतीत हुआ था ! और काफी हद तक यह अपने मकसद में कामयाब भी हुआ था ! कम उम्र में बच्चों का विवाह कर देने से किस तरह से उनके व्यक्तित्व का विकास अवरुद्ध हो जाता है, उनकी शिक्षा दीक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है और उनका शारीरिक और मानसिक शोषण किया जाता है जिसके लिये वे कतई परिपक्व नहीं होते इन संवेदशील मुद्दों को धारावाहिक में बड़ी कुशलता से पिरोया गया था ! कम उम्र की बच्चियाँ किस तरह ससुराल के अपरिचित वातावरण से स्वयं को जोड़ नहीं पातीं और उन्हें उनके बाल सुलभ क्रिया कलापों के लिये कितनी प्रताडना और अपमान सहना पडता है इसे कहानीकार ने बड़ी खूबसूरती के साथ अनेकों प्रसंगों व घटनाओं के माध्यम से परदे पर उतारा था जिनमें आनंदी और जगिया की भूमिका निभाने वाले कलाकारों ने अपने बेजोड अभिनय से जान डाल दी थी ! कहानी की केन्द्रीय पात्र अल्पायु की बालिका वधू आनंदी से होने वाली बाल सुलभ मानवीय भूलें ओर कठोर अनुशासन प्रिय दादी सा का उसे बात बात पर अपमानित और दण्डित करना जहाँ दर्शकों की संवेदना को गहराई से छू रहे थे वहीं अपना संदेश भी बखूबी पहुँचा रहे थे ! लेकिन हर कहानी का कथानक और संदेश कभी तो समाप्त होता है ! टी वी धारावाहिकों के साथ सबसे बड़ी समस्या यही है कि लोकप्रियता को भरपूर भुनाने के चक्कर में और अधिकतम लाभ कमाने की जुगत में लगे रहने के कारण इनके निर्माता अपनी कहानियों को समाप्त करना नहीं चाहते और उनमें ऊटपटांग प्रसंग और नए नए पात्र जोड़ उनका सत्यानाश कर देते हैं और यहीं से धारावाहिकों का स्तर गिरना आरम्भ हो जाता है !
बालिका वधू भी आजकल इसी सिंड्रोम से गुजार रहा है ! जब तक कहानी आनंदी, सुगना, फूली, गहना की चलती रही दर्शक उसे सराहते रहे लेकिन महावीर सिंह के आते ही धारावाहिक अपने उद्देश्य से भटक गया ! अब बच्ची बालिका वधू की कहानी वयस्कों के आपसी टकराव और बदले की कहानी बन गयी ! उसने बड़े भाई के अनाचार, लालच, कुटिलता, बदले की भावना और ज़ुल्मों सितम का रूप ले लिया जिसका बालिका वधू के ध्येय से कोई लेना देना नहीं था ! आनंदी के सदय, सहृदय पिता का नफ़रत और बदले की आग में जलने वाले क्रूर व्यक्ति के रूप में रूपान्तरण भी लोगों को नहीं भाया ! और अब टीपरी नाम के पात्र के आने से रही सही कसर भी पूरी हो गयी ! अब यह धारावाहिक पूरी तरह से अपनी गरिमा, गुणवत्ता और महत्व खो चुका है ! आम डी ग्रेड के सामान्य धारावाहिकों की तरह यह भी महिलाओं की छवि धूमिल करने वाला स्तरहीन धारावाहिक बन कर रह गया है जिसमें महिलाओं की डाह, जलन, ईर्ष्या द्वेष, कुटिलता और षड्यंत्रकारी प्रकृति का अतिरंजना के साथ निरूपण किया गया है ! आश्चर्य होता है कि ये पात्र जो अचानक से परिवार में इतने महत्वपूर्ण हो जाते हैं कि घर के सम्पूर्ण वातावरण और निर्णयों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं और घर के सारे लोग उनके कुचक्रों से अनजान उनके आगे पीछे चक्कर लगाते रहते हैं उनका पहले कभी भी किसी प्रसंग में कोई ज़िक्र तक क्यों नहीं आता ! सौतिया डाह से ग्रस्त टीपरी का प्रवेश धारावाहिक में इसी रूप में हुआ है जो दर्शकों को हजम नहीं हो रहा है !
मेरी दुआ है कि 'बालिका वधू' के निर्माता, निर्देशक और चैनल का प्रबंधन इस पर जल्दी ही विचार कर इसे तत्काल प्रभाव से बंद कर दें वरना कहीं इसका हश्र भी “क्योकि सास भी कभी बहू थी” की तरह ना हो जाए ! आश्चर्य होता है कि इतने अच्छे सीरियल बनाने वाली क्रिएटिव टीम में आत्मविश्वास की इतनी कमी क्यों है ! आपमें यदि रचनात्मकता का अभाव नहीं है तो क्यों नहीं आप सही बिंदु पर धारावाहिक को बंद कर एक नया और उससे भी बेहतर दूसरा धारावाहिक बनाते जिसे दर्शक हाथों हाथ लें और वह भी लोकप्रियता के शिखर को छुए ? इस तरह अपनी ही सुन्दर कृति का सर्वनाश करने के अपराध से तो कम से कम बच जायेंगे !

साधना वैद

Saturday, April 10, 2010

सुधीनामा

यह कविता मैं अपनी सबसे अंतरंग और घनिष्ठ सखी को समर्पित कर रही हूं ! नहीं मालूम वह कभी इसे पढेगी या नहीं लेकिन मेरे मन के ये उदगार हवा के पंखों पर सवार हो उस तक पहुँच जायेंगे तो मुझे बहुत खुशी होगी !


मैं सुधियों के स्वप्नलोक में खोई हूँ,
बीते उन लम्हों को फिर जी लेने दो !
तनिक मुझे सो लेने दो !

वो तेरा हर पल मुझको नयनों में रखना,
वो मेरा सुबहो शाम राह तेरी तकना,
तेरे कदमों की आहट सुन वो जी उठना,
तेरी बातों के जादू से मन का मथना,
उन सारी बातों को फिर से पी लेने दो !
तनिक मुझे सो लेने दो !

वो घंटों चुप-चुप गलबहियाँ डाले रहना,
वो बिन बोले ही सारी बातों का कहना,
वो मेरी हर पीड़ा को मेरे संग सहना,
वो मेरे दुःख का तेरी आँखों से बहना,
करुणा की उस मूरत को बस छू लेने दो !
तनिक मुझे सो लेने दो !

वो पहरों ढलते सूरज को तकते रहना,
धुंधली शामों में हाथ थाम चलते रहना,
तेरे आँचल की खुशबू से मन भर लेना,
तेरे गीतों का मन को पावन कर देना,
इन सारे भावों से अंतर भर लेने दो !
तनिक मुझे सो लेने दो !

ये छाया तेरी तेरे बिना अधूरी है
कहने को तो बस कुछ मीलों की दूरी है,
तन के बिन रहता छाया का अस्तित्व कहाँ,
मेरे दिल तेरी धडकन का बस एक जहाँ,
‘तू जहां रहे आबाद रहे’ कह लेने दो !
तनिक मुझे सो लेने दो !


साधना वैद

Thursday, April 8, 2010

एक खाऊँ कि दो खाऊँ ( बाल कहानी ) १०

किसी गाँव में एक महा आलसी लड़का अपनी माँ के साथ रहता था ! उसकी माँ घर और खेत के सारे काम खुद करती थी और बेटा सारे दिन या तो सोता रहता था या गाँव भर में छोटे बच्चों के साथ हुडदंग मचाता रहता था ! लाड़ प्यार के मारे माँ अपने बेटे से कुछ भी नहीं कहती थी !
एक दिन गाँव की औरतों ने उसे समझाया, “अगर ऐसे ही चलता रहा तो तुम्हारा बेटा कभी कोई काम नहीं सीख पायेगा और एकदम निखट्टू हो जाएगा ! तुम कब तक उसके लिये काम करती रहोगी ! तुम्हारा भी तो बुढ़ापा आएगा ! तुम उसे काम करने के लिये हर रोज शहर भेजा करो ! उसे भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए !“
माँ को बात समझ में आ गयी ! अगले दिन उसने अपने बेटे के लिये चार रोटियाँ बनाईं और एक कपड़े मे बाँध कर उसे दे कर कहा, “बेटा शहर जाओ, कुछ काम करो और जो पैसे मिलें उन्हें लेकर शाम को ही घर वापिस आना ! भूख लगे तो ये रोटियाँ खा लेना !“
बेटा गाँव से शहर की ओर काम की तलाश में निकल पड़ा ! चलते-चलते वह गाँव से बहुत दूर आ गया ! उसे जोर की भूख लग आई ! सामने एक अंधा कुआँ था जिसका पानी सूख चुका था और अब उसमें चार परियों ने अपना बसेरा बना लिया था ! लड़का कुए के चबूतरे पर बैठ गया और रूमाल खोल कर रोटियों को देख सोचने लगा ‘माँ ने चार रोटियाँ रखी हैं अगर कुछ देर बाद फिर से भूख लगी तो क्या करूँगा ! इसी उधेड़बुन में वह जोर-जोर से बोलने लगा,
”एक खाऊँ
कि दो खाऊँ
कि तीन खाऊँ
कि चारों ही खा जाऊँ !“
यह आवाज़ कुए के अंदर परियों के कान में पड़ी जो दिन में तो सोया करती थीं और रात को बाहर निकलती थीं ! वो डर गयीं ! समझीं कोई उन चारों परियों को खाने की बात कर रहा है ! वो हाथ जोड़ कर बाहर आयीं ! साथ में एक जादू का बटुआ भी लाईं और लड़के से बोलीं, ”भाई तुम तो किसीको मत खाओ बदले में यह बटुआ लेलो ! यह जादू का है ! यह कभी खाली नहीं होता ! इसमें जब भी हाथ डालोगे तुम्हें रुपये मिल जाया करेंगे !”
लड़का बहुत खुश हो गया और परियों को धन्यवाद देकर अपने घर की तरफ चल पड़ा ! सोचने लगा कि अब तो माँ बहुत खुश हो जायेगी ! गाँव से पहले रास्ते में एक सराय पड़ी ! लड़का वहाँ कुछ खाने के लिये रुक गया ! उसके पास पैसों की तो अब कोई कमी थी नहीं इसलिए उसने खूब सारी अच्छी-अच्छी चीजें लाने का हुक्म दिया ! सराय वाले ने उसे ऊपर से नीचे तक घूरा ! उसकी हुलिया देख उसे शक हो रहा था कि वह खाने की कीमत चुका भी पायेगा या नहीं ! इसलिए उसने पूछ ही लिया, ”तुम्हारे पास पैसे-वैसे भी हैं या ऐसे ही मुफ्त में खाने की सोच रहे हो !“
लड़का बोला, ”मेरे पास तो जादू का बटुआ है जिसमें रुपये कभी खत्म ही नहीं होते ! विश्वास नहीं होता तो ये देखो !“ और उसने सराय वाले को कई बार अपने बटुए में से रुपये निकाल कर दिखाए ! सराय वाला बहुत बेईमान और चालाक आदमी था ! उसने लड़के की खूब खातिर की और उसके साथ दोस्ती भी कर ली ! खाना खतम होने के बाद उसने लड़के से कहा,”खाने के बाद थोड़ा आराम ज़रूर करना चाहिए ! कमरे में थोड़ी देर सो लो फिर चले जाना !“
लड़का थका हुआ तो था ही फ़ौरन बात मान कर आराम करने के लिये कमरे में चला गया ! जब लड़का सो गया तो सराय वाले ने उसका जादू का बटुआ चुरा लिया और उसकी जगह वैसा ही दूसरा बटुआ रख दिया ! जागने पर लड़का नकली बटुआ लेकर ही अपने गाँव की ओर चल दिया ! उसका असली बटुआ तो सराय वाले ने चुरा लिया है यह उसे पता ही नहीं चल पाया ! खुशी-खुशी वह अपनी माँ के पास पहुँचा ! माँ ने कहा, “आ गए बेटा ? कुछ काम मिला ? कुछ पैसे कमाए ?“
बेटा बोला, ”माँ देखो तो मैं तुम्हारे लिये कितना बढ़िया बटुआ लाया हूँ !“
माँ बोली, “अरे बेटा बटुए का हम क्या करेंगे ? हमारे पास रखने के लिये इतने पैसे ही कहाँ हैं ?“
बेटा बोला, ”माँ इसे खोल कर तो देख इसमें पैसे ही पैसे हैं !“
बटुआ खोल माँ ने अंदर टटोल कर देखा तो वह खाली था !
वह बोली, “अरे यह तो खाली है !”
बेटे ने भी बटुए में बार-बार हाथ डाल कर देखा लेकिन वह तो खाली का खाली ही रहा ! माँ ने उसे खूब डाँटा ! बेटा मुँह लटका कर बैठ गया !
दूसरे दिन बेटे ने माँ से कहा, “माँ एक बार फिर मेरे लिये रोटी बना दे ! आज मैं ज़रूर कुछ कमा कर लाउंगा !“
माँ ने उसके लिये आज भी चार रोटियाँ बनाईं और एक कपड़े में बाँध कर उसे दे दीं ! लड़का सीधा उसी कूए के पास पहुँचा और रोटी का कपड़ा खोल कर बैठ गया और जोर जोर से बोलने लगा,
”एक खाऊँ
कि दो खाऊँ
कि तीन खाऊँ
कि चारों ही खा जाऊं !”
उसकी आवाज़ सुन कर परियाँ फिर जाग गयीं ! सोचने लगीं कि यह मुसीबत तो फिर आ गयी ! वो फिर कूए के बाहर आयीं और लड़के से बोलीं, “क्यों भाई कल हमने तुमको इतना अच्छा उपहार दिया तुम फिर चारों को खाने की बात करने लगे !“
लड़का बोला, ”वह बटुआ तो नकली था ! उसमें तो सिर्फ एक बार ही पैसे निकले फिर वो खाली हो गया !”
परियों ने कहा, ”ऐसा हो ही नहीं सकता !”
लड़का बोला, ”लेकिन ऐसा ही हुआ है !”
परियाँ सोच में पड़ गईं ! वो एक बार फिर कूए में गयीं और इस बार एक कटोरा लेकर आयीं और उसे लड़के के हाथ में देकर बोलीं, “यह जादू का कटोरा है ! इसमें हाथ डाल कर जिस खाने की चीज़ का नाम लोगे वही निकल आयेगी ! इसे ले जाओ और अब दोबारा हमें परेशान मत करना !”
लड़का बहुत खुश हो गया और कटोरा लेकर घर की तरफ चल दिया ! रास्ते में फिर उसी सराय में रुका ! सराय वाला उसे देख कर बोला, “आओ दोस्त आओ ! तुम्हारे लिये क्या खाना लगवाऊं ?”
लड़का बोला, “कुछ भी नहीं ! आज तो मेरे पास जादू का कटोरा है !”
सराय वाला बोला, “अच्छा हमें भी तो दिखाओ !” लड़के ने कटोरे में हाथ डाला और बोला, “जलेबी !” कटोरा जलेबियों से भर गया ! लड़के ने खुद भी छक कर खाईं और सराय वाले को भी खिलाईं ! सराय वाले के आग्रह पर लड़के ने कटोरे से पूरी, कचौड़ी, लड्डू, इमरती आदि कई पकवान निकाल कर उसे दिखाए और सबको खिलाए ! सराय वाला बोला, “ठीक है ठीक है ! लेकिन मैं तुमको आराम किये बिना यहाँ से नहीं जाने दूँगा ! आखिर तुम तो मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो !” लड़का फिर से मान गया और आराम करने के लिये कमरे में जाकर सो गया ! सराय वाले ने इस बार भी उसका जादू का कटोरा चुरा लिया और उसकी जगह बिलकुल वैसा ही दूसरा नकली कटोरा रख दिया ! सोकर उठने के बाद लड़का कटोरा लेकर अपने गाँव की ओर चल दिया ! इस बार उसकी माँ उसे जल्दी आया देख हैरान थी ! बोली, “बेटा आज तो तुम बड़ी जल्दी आ गए !”
लड़का बोला, “हाँ माँ १ देख आज मैं कितनी बढ़िया चीज़ लाया हूँ ! अब तो तुझे चूल्हा फूंकने की कोई ज़रूरत ही नहीं है माँ ! हम रोज अच्छे-अच्छे पकवान खाया करेंगे ! तू जल्दी से थाली ले आ !”
हैरान माँ रसोई से थाली ले आई और लड़का कटोरे में हाथ डाल कई पकवानों के नाम लेता रहा लेकिन कुछ भी नहीं निकला ! माँ को अपने बेटे की मूर्खता पर बहुत गुस्सा आया ! दुखी होकर उसने अपना माथा पीट लिया ! लड़का भी हैरान परेशान होकर खिन्न मन से सोने चला गया ! उसे समझ में नहीं आ रहा था कि घर आने पर उसकी चीज़ों का जादू कहाँ गुम हो जाता है ! तीसरे दिन फिर वह माँ से जिद कर रोटियाँ बनवा कर काम की तलाश में घर से निकला और उसी कूए के पास पहुँच कर खाने के लिये बैठ गया ! आज भी वह जोर-जोर से बोल रहा था,
“एक खाऊँ
कि दो खाऊँ’
कि तीन खाऊँ
कि चारों ही खा जाऊं !”
बेचारी परियाँ फिर घबरा कर बाहर आयीं और लड़के से पूछा, “क्यों भाई रोज-रोज क्यों हमें परेशान करने के लिये क्यों आ जाते हो ?”
लड़का बोला, “तुम्हारा तो कटोरा भी खराब निकला ! सिर्फ एक बार ही काम आया !”
यह सुन कर परियों का माथा ठनका ! उन्होंने लड़के से सारी बातें विस्तार से बताने के लिये कहा ! लड़के ने दोनों दिन सराय होते हुए घर जाने वाली बात परियों को बताई और यह भी बताया कि सराय वाले से उसकी कितनी पक्की दोस्ती हो गयी है ! परियों को सारा माजरा समझ में आ गया ! वो कूए के अंदर गयीं और एक थैला लेकर बाहर आईं ! थैला उन्होंने लड़के को दिया ! लड़के ने पूछा, “इसमें क्या है ?”
परियों ने कहा, “खुद खोल कर देखो !” लड़के ने जैसे ही थैला खोला उसमें से एक सोंटा बाहर निकला और लड़के को पीटने लगा ! लड़का मदद के लिये चिल्लाने लगा ! परियाँ बोलीं, “बस गुरू रुक जाओ !“ सोंटा अपने आप रुक गया और थैले के अंदर घुस गया ! परियों ने लड़के को समझाया, “इसका नाम गुरूजी सोंटा है ! जो भी इस थैले को खोलता है यह उसीको पीटने लगता है ! जब तुम कहोगे 'गुरु रुक जाओ' तो यह अपंने आप थैले में आ जायेगा ! जिसने भी तुम्हारा बटुआ और कटोरा चोरी किया है वह ज़रूर इस थैले को भी खोलेगा और पिटेगा ! बस तुम उसीसे अपना बटुआ और कटोरा वापिस मांग लेना !”
थैला लेकर लड़का सीधे सराय पर पहुंचा ! सराय वाला बोला, “आओ दोस्त बैठो ! इस बार क्या नयी चीज़ लेकर आये हो ?” लडके ने कहा, “इस बार लाया तो कुछ भी नहीं हूं लेकिन बहुत थका हुआ हूँ इसलिए आराम करना चाहता हूँ !” सराय वाले ने कहा, “हाँ हाँ क्यों नहीं ! कमरे में जाकर सो जाओ !” दरअसल सराय वाले ने लड़के की बगल में दबा हुआ थैला देख लिया था !
लड़का कमरे में जाकर सोने का नाटक करने लगा ! थोड़ी देर बाद सराय वाला दबे पाँव अंदर आया और थैले को खोल कर देखने लगा ! थैले से गुरूजी सोंटा बाहर निकल पड़ा और सराय वाले को दनादन पीटने लगा ! सराय वाला कमरे के बाहर भागा ! सोंटा भी उसके पीछे-पीछे बाहर आकर उसकी धुनाई करने लगा ! जब सराय वाला बहुत हाय-हाय करने लगा तो लडके ने सोंटे को आदेश दिया, “बस गुरू रुक जाओ !” डंडा वापिस थैले में घुस गया ! लड़के ने सराय वाले से कहा, “तुमने मेरा बटुआ और कटोरा जो चुराया है उसे वापिस करो !“ पहले तो सराय वाले ने चोरी से इन्कार किया पर लड़के के हाथ में थैला देख कर बोला, “ठहरो मैं अभी लाता हूं !” और उसने अंदर से लड़के का असली बटुआ और कटोरा लाकर उसे दे दिया !
लड़का इस बार अपना असली सामान लेकर अपनी माँ के पास पहुँचा और बोला, “जल्दी आ माँ देख इस बार मैं असली बटुआ और कटोरा ले आया हूँ !”
माँ बोली, “मुझे कुछ नहीं चाहिए तुम रोज-रोज नाटक मत किया करो !”
बेटे ने कहा, “तू देखो तो सही माँ!” और उसने कटोरे से तरह-तरह के मीठे नमकीन पकवान निकाल माँ के सामने सजा दिए ! दोनों ने भरपेट खाना खाया ! माँ ने बटुए से रुपये भी निकाल कर देखे ! माँ को प्रसन्न देख बेटा भी बहुत खुश हुआ ! दोनों खूब मज़े से रहने लगे ! जब माँ ने उस थैले के बारे में पूछा तो बेटा बोला, “इसमें कुछ नहीं है ! इसको बस टंगा ही रहने दिया करो !“
एक दिन उत्सुकतावश माँ ने थैले को खोला तो सोंटा दन से निकल कर माँ को ही पीटने लगा ! बेटा पास में ही था उसने सोंटे को रोक दिया और वापिस थैले मे डाल दिया और माँ को समझाया यह गुरूजी सोंटा है और यह चोरों की पिटाई के लिये बना है ! धीरे-धीरे माँ बेटा खूब संपन्न हो गए ! कई बार चोरों ने उनके यहाँ हाथ साफ़ करने की सोची पर हर बार गुरूजी सोंटे से पिट कर खाली हाथ ही लौटे !
परियों की कहानी सबसे अनजानी थी ! महा आलसी और निखट्टू लड़का अब गाँव वालों की नज़र में सबसे चतुर और धनी व्यक्ति बन गया था और सब उसकी बहुत इज्ज़त करते थे !

साधना वैद !