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Sunday, March 6, 2011

खिडकी


वह तो सुदूर आकाश में
स्वच्छंद उड़ने वाली,
ताज़ी हवा में जीने वाली
और चाँद सूरज के
निर्मल, प्रखर और
प्राणदायी प्रकाश को भरपूर
आत्मसात करने वाली
उन्मुक्त चिड़िया थी
तुमने ही तो उसे
अन्धकार के गहरे
गह्वर में ढकेल
एक के बाद एक
सारी खिड़कियाँ
बंद कर दी थीं !
यहाँ तक कि
रोशनी के लिये
एक नन्हा सा सूराख
भी नहीं छोड़ा था !
अब इस अँधेरे में ही
क़ैद रहने की उसे
आदत सी हो गयी है !
अब ज़रा सी रोशनी
से उसकी आँखें
चुँधिया जाती हैं,
ज़रा सी ताज़ी हवा से
उसका दम घुटने लगता है !
खरोंच कर नयी खिडकी
बनाने के लिये उसके
नाखून बूढ़े हो चुके हैं
और नज़र भी अब
कमज़ोर हो गयी है !
क्या पता सदियों से
अँधेरे में रहने की आदी
उसकी आत्मा अब
ताज़ी हवा और
प्रखर प्रकाश का यह सदमा
झेल भी पायेगी या नहीं !
इसलिए बेहतर यही होगा
कि अब तुम
उसके लिये कोई खिडकी
मत खोलो,
उसे अब अपने गहन गह्वर में
किसी भी तरह के
प्रकाश
और हवा के बिना
क़ैद रहने दो
क्योंकि अब उसे ऐसे ही
जीने की आदत
हो गयी है और
यही उसे सुहाता है !

साधना वैद

23 comments :

  1. बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति.....बड़ी अच्छी तरह से जीवन चित्रण किया है...मार्मिक और वास्तविक....बधाई।

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  2. उसे अब अपने गहन गह्वर में
    किसी भी तरह के
    प्रकाश और हवा के बिना
    क़ैद रहने दो
    क्योंकि अब उसे ऐसे ही
    जीने की आदत
    हो गयी है और
    यही उसे सुहाता है !

    बहुत मर्मस्पर्शी और संवेदनशील प्रस्तुति..बहुत सुन्दर विम्बों का प्रयोग..एक कटु सत्य की बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..

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  3. उसके लिये कोई खिडकी
    मत खोलो,
    उसे अब अपने गहन गह्वर में
    किसी भी तरह के
    प्रकाश और हवा के बिना
    क़ैद रहने दो
    क्योंकि अब उसे ऐसे ही
    जीने की आदत
    हो गयी है और
    यही उसे सुहाता है !
    bahut sukshm chintan kiya hai...

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  4. बहुत सही चित्रण जीवन का |सुन्दर अभिव्यक्ति |
    आशा

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  5. क्योंकि अब उसे ऐसे ही
    जीने की आदत
    हो गयी है और
    यही उसे सुहाता है !

    गहन उदासी से भरी रचना -
    कटु सत्य कहती हुई -
    प्रारब्ध से कैसे कोई भागे -
    बहुत अच्छीरचना है.

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  6. आप की रचना पहले की तरह हृदयस्पर्शी है ..
    लेकिन नायिका के निराशा का भाव खटकता है..
    बधाइयाँ

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  7. कटु सत्य को उजागर करती बेहद उम्दा रचना दिल को अन्दर तक भिगो गयी।

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  8. परिवर्तन तो सन्सार का नियम है और जहा नारी के उस परिवर्तन को अप्नाने की बात आती है तो उसे अपना लेना चाहिये. बीति बात भुला कर आगे की राह को प्रश्स्त करने के लिये उजाले की ओर अग्र्सर होना ही होगा.

    सुन्दर कविता.

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  9. क्या पता सदियों से
    अँधेरे में रहने की आदी
    उसकी आत्मा अब
    ताज़ी हवा और
    प्रखर प्रकाश का यह सदमा
    झेल भी पायेगी या नहीं !

    आदतें आसानी से नहीं छूटतीं ..नारी जीवन का बहुत मार्मिक चित्रण किया है ..अच्छे बिम्ब लायी हैं ...बहुत संवेदनशील रचना

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  10. chidya aur nari dono mein koi fark nahi hai ;;;;;;;;;;bahut sunder

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  11. ओह!! यह तो बहुत ही मार्मिक कविता है...

    ऐसी पीड़ा से गुजरने वाले भी इस जहाँ में कम नहीं हैं....जिनके मन की दशा, कभी-कभी ऐसी भी हो जाती है...और आक्रोश ऐसे विचार को जन्म दे बैठते हैं...आपने उनकी मन की अवस्था का बड़ी कुशलता से चित्रण किया है.

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  12. बहुत सुंदर ओर भाव पुर्ण कविता, धन्यवाद

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  13. से अब अपने गहन गह्वर में
    किसी भी तरह के
    प्रकाश और हवा के बिना
    क़ैद रहने दो
    क्योंकि अब उसे ऐसे ही
    जीने की आदत
    हो गयी है और
    यही उसे सुहाता है !

    साधना जी इतना आक्रोश क्यों?

    बहुत मार्मिक और हृदयस्पर्शी कृति है. सघन चिंतन से उपजी कविता के लिए बहुत बधाईयाँ.

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  14. उसे अब अपने गहन गह्वर में
    किसी भी तरह के
    प्रकाश और हवा के बिना
    क़ैद रहने दो
    क्योंकि अब उसे ऐसे ही
    जीने की आदत
    हो गयी है और
    यही उसे सुहाता है !
    गहन पीडा ! क्या करे वो जीने के लिये आदत तो डालनी ही पडती है। शुभकामनायें।

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  15. क्योंकि अब उसे ऐसे ही
    जीने की आदत
    हो गयी है और
    यही उसे सुहाता है !

    बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ।

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  16. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 08-03 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/

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  17. स्मिताMarch 7, 2011 at 10:54 PM

    भावनात्मक कविता, अब चिड़िया को मन के उजाले में सपनों के पर लगाकर उड़ जाना चाहिये |उन्मुक्त गगन में उसके साथी चहचहा कर उसे बुलारहे हैं|

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  18. एक आम स्त्री के जीवन से जुड़ी रचना...!!

    बेहद मर्मस्पर्शी !!

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  19. बहुत ही शानदार

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  20. खिड़कियाँ बंद कर देने से अँधेरे में रहने की आदत हो जाती है ...
    मगर हौसला टूटना नहीं चाहिए ...अँधेरे में रहा हुआ व्यक्ति उजाले की क़द्र बेहतर करता है !

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  21. ऐसे जीना आसान नहीं होता ... इसलिए किसी को ऐसी जिंदगी नहीं देनी चाहिए ...
    गहरे भावों से लिखा है आपने इए रचना को ...

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  22. क्या पता सदियों से
    अँधेरे में रहने की आदी
    उसकी आत्मा अब
    ताज़ी हवा और
    प्रखर प्रकाश का यह सदमा
    झेल भी पायेगी या नहीं !

    साधना जी आपने इस बार भी न सिर्फ़ ग़ज़ब का शब्द संयोजन प्रस्तुत किया है वरन कथ्य को ले कर भी आप बहुत ही चौकस नज़र आ रही हैं| नमन|

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  23. क्या पता सदियों से
    अँधेरे में रहने की आदी
    उसकी आत्मा अब
    ताज़ी हवा और
    प्रखर प्रकाश का यह सदमा
    झेल भी पायेगी या नहीं !...

    मार्मिक ...सुंदर भावाभिव्यक्ति.

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