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Thursday, May 30, 2013

ज़िंदगी चलती रही


हर जगह, हर मोड़, पर इंसान ठहरा ही रहा,
वक्त की रफ़्तार के संग ज़िंदगी चलती रही ! 

खुशनुमां वो गुलमोहर की धूप छाँही जालियाँ
चाँदनी, चम्पा, चमेली की थिरकती डालियाँ
पात झरते ही रहे हर बार सुख की शाख से
मौसमों की बाँह थामे ज़िंदगी चलती रही !

वन्दना की भैरवी थक मौन होकर रुक गयी ,
अर्चना के दीप की बाती दहक कर चुक गयी ,
पाँखुरी गिरती रहीं मनमोहना के हार की
डोर टूटी हाथ में ले ज़िंदगी चलती रही ! 

खोखले स्वर रह गये और माधुरी चुप हो गयी ,
ज़िंदगी के गीत की पहचान जैसे खो गयी ,
वेदना के भार से अंतर कसकता ही रहा
और टूटी तान सी यह ज़िंदगी चलती रही ! 

चाँद सूरज भाल पर मेरे अँधेरे लिख गये ,
स्वप्न सुंदर नींद में ही तोड़ते दम दिख गये ,
 देवता अभिशाप देके फेर कर मुँह सो गये
दर्द की सौगात देकर ज़िंदगी चलती रही ! 

आत्मा निर्बंध को बंधन नियम का मिल गया ,
पंख टूटी हंसिनी को गगन विस्तृत मिल गया ,
हर कदम पर रूह घायल हो तड़प कर रह गयी
और निस्पृह भाव से बस ज़िंदगी चलती रही !


साधना वैद

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