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Sunday, January 25, 2015

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें


उल्लास लाया
गणतंत्र दिवस
देश गर्वित !

हर्ष प्रसंग
मनोहारी छटायें
राजपथ पे ! 


विरल दृश्य
संस्कृति औ' सैनिक
मान बढ़ायें !

पावन पल
मनमोहक झाँकी
मुग्ध दर्शक !

वीर जवान
कदम से कदम
मिलाते चलें !

आसमान में
अद्भुत करतब
करें हैरान !

धारे हुए है
हर भारतवासी
वसंती चोला !

गर्व है हमें
गणतंत्र हमारा
विश्व में न्यारा !

संकल्प लेंगे
अपने भारत का
मान रखेंगे !

राष्ट्र पर्व है
छब्बीस जनवरी
मान हमारा !


साधना वैद

Saturday, January 24, 2015

मेरे मन मंदिर की मूरत


अक्षर-अक्षर जोड़ तुझे है ढाला मैंने 
भावतूलिका से हर नक्श सँवारा मैंने 
मनहर रंगों से तेरा श्रृंगार किया है 
अपने मन मंदिर में तुझे बिठाया मैंने ! 

अपने उर की ज्योत तेरे उर में बाली है 
प्रेम मन्त्र पढ़ने में ज्यों सिद्धि पा ली है 
दिव्य कुसुम अर्पित कर इन मंजुल चरणों में 
इस मूरत में प्राण प्रतिष्ठा कर डाली है ! 

अंतस की अग्नि से दीप जलाये मैंने 
अश्रुमणि के कंठहार पहनाये मैंने 
क्षुब्ध हृदय कीआह अगर सी सुलग उठी है 
आर्द्र भाव से चन्दन तिलक लगाये मैंने ! 

विगलित गीतों से नित चरण पखारा करती 
मान भरी व्याकुल हो तुम्हें पुकारा करती 
पर तुम कब इन मौन पुकारों को सुन पाये
अक्षर अक्षत से नित थाल सजाया करती ! 

अपने मन मंदिर की मूरत गढ़ ली मैंने
भावलोक की हर ऊँचाई चढ़ ली मैंने
अंतर की जिस रचना में आकार लिया है
 अक्षर-अक्षर शब्द-शब्द सब पढ़ ली मैंने !


साधना वैद






Tuesday, January 20, 2015

ज्वालामुखी



अच्छा ही है
जो दूर हो तुम !
धधकते हृदय में इस वक्त
सिर्फ अंगार ही अंगार हैं
ज्वाला ही ज्वाला है
जलन ही जलन है  
और है
उबलते उफनते लावे का
प्रगल्भ, प्रगाढ़, उद्दाम प्रवाह
जिसके स्पर्श मात्र से
झुलस कर सारी संवेदनाएं
निमिष मात्र में
भस्मसात हो जाती हैं !
और शेष रह जाती है
उन कोमलतम भावनाओं की
मुट्ठी भर राख !  
यदि संजो कर रखना है
अपनी मृदुता को  
अपनी कोमलता को
अपनी मधुरता को तो
इस पल न आना मेरे समीप
आज सुन्दर, सुरभित,
सद्य कुसुमित,
कमनीय पुष्पों से सजा
मेरा मन उपवन
भेंट चढ़ गया है
इस ज्वालामुखी की !
और अब तेज हवाओं के साथ
चहुँ ओर उड़ रही है
उन खिले अधखिले जले हुए
फूलों की राख जो
आँखों में घुस कर
दृष्टि को धुँधला रही है
और सृष्टि कर रही है 
अंतर में एक और
नये ज्वालामुखी की !


साधना वैद   





Saturday, January 17, 2015

दूल्हा भट्टी की कहानी ( लोहड़ी पर्व )




लोहड़ी - संक्रांति – पोंगल – बीहू, ये सारे पर्व देश में लगभग एक ही समय में मनाये जाते हैं | शीत ऋतु के मध्य में सूर्यदेव के उत्तरायण यात्रा के आरम्भ होने के उपलक्ष्य में और मकर संक्रांति के एक दिन पहले लोहड़ी का त्यौहार हर्षोल्लास, ढोल की थाप और नाच गाने के साथ परम्परागत तरीके से मनाया जाता है | ये सारे पर्व धर्म प्रधान नहीं हैं अपितु ऋतुओं के बदलाव के साथ प्रकृति एवं जनजीवन में आने वाले परिवर्तन के द्योतक हैं |


लोहड़ी पंजाब में मनाया जाने वाला पर्व है जो पंजाब से अलग हो चुके प्रान्तों जैसे हिमाचल प्रदेश और हरियाणा में भी उसी उत्साह के साथ मनाया जाता है | इन प्रदेशों से आकर जो प्रवासी देश के विभिन्न भागों में बस गये हैं वहाँ भी ये लोग उसी उमंग और उत्साह के साथ इस पर्व को मनाते हैं | बच्चे घर-घर जाकर गीत गाते हुए लोहड़ी का उपहार माँगते हैं और बदले में लकड़ियाँ, मिठाई, गजक, रेवड़ी इत्यादि उन्हें दिये जाते हैं | देर शाम किसी सार्वजनिक स्थल पर सभी लोग एकत्रित होते हैं और लकड़ियों को जला कर उसके चारों तरफ परिक्रमा लगाते हुए गीत गाते हैं और जोश और उल्लास के साथ भांगड़ा और गिद्धा करते हैं | तिल, गुड़, मूंगफली, गजक, रेवड़ी और अन्य भुने हुए अनाज खाते भी हैं और सबको बाँटते भी हैं ! 
 

इस पर्व से जुड़ी हुई एक रोचक लोक कथा भी है जो दर्द भरी तो अवश्य है लेकिन हर सूरत में जन मानस का उत्साह बढ़ाने में कारगर है ! इस कथा का नायक है दूल्हा भट्टी |


अकबर के शासन काल में अनेक राजपूतों ने अकबर के सामने घुटने टेकने के बजाय विद्रोह का मार्ग अपनाया और जंगलों में रह कर शाही फ़ौज के साथ छापे मार लड़ाई करने लगे | इन्हीं भाटी राजपूतों में से प्रसिद्द हुआ एक योद्धा जिसको दूल्हा भट्टी के नाम से जाना जाता है | दूल्हा भट्टी एक रोबिनहुड किस्म का व्यक्ति था जो अमीर लोगों से धन लूट कर गरीब लोगों की मदद किया करता था | उसका एक और अभियान था कि ऐसी गरीब हिन्दू और सिख लड़कियों के विवाह में मदद करना जिनके ऊपर शाही ज़मींदारों और शासकों की बुरी नज़र होती थी और जिनको अगवा कर वे लोग गुलाम बना लेते थे और दासों के बाज़ार में बेच दिया करते थे | दूल्हा भट्टी ऐसी लड़कियों के लिये वर ढूँढता था और उनका कन्यादान स्वयं किया करता था | अपनी इसी परोपकारी प्रवृत्ति की वजह से दूल्हा भट्टी सबसे अधिक लोकप्रिय और प्रसिद्ध हुआ | 

अकबर की फ़ौज उसे डाकू मानती थी और उसे पकड़ने के लिये हमेशा पीछा करती रहती थी | ऐसे ही एक मुश्किल समय में दूल्हा भट्टी को सुन्दरी और मुंदरी नाम की दो गरीब लेकिन रूपवान बहनों के बारे में पता चला जिन्हें वहाँ का ज़मीदार अगवा करना चाहता था और लड़कियों का गरीब चाचा उनकी रक्षा करने में असमर्थ था | अनेकों कठिनाइयों के बावजूद भी दूल्हा भट्टी ने उन लड़कियों के लिये वर ढूँढे और लोहड़ी के दिन रात के अँधेरे में जंगल में कुछ लकड़ियाँ जला कर उस अग्नि के चारों ओर फेरे लगवा कर विवाह सम्पन्न करवाया, उनका कन्यादान किया और उन लडकियों को उनके पतियों के साथ विदा कर दिया | हर बार की तरह दूल्हा भट्टी सुन्दरी मुंदरी के लिये कुछ भी दहेज या उपहारों की व्यवस्था नहीं कर पाया | इसलिए दोनों को सिर्फ एक-एक सेर चीनी ही देकर डोली में बैठा दिया | इसी घटना को आज भी लोहड़ी के दिन याद किया जाता है और लोकगीतों में इसका वर्णन भी मिल जाता है | 

कालान्तर में दूल्हा भट्टी अकबर की फ़ौज के हाथों पकड़ा गया और उसको फाँसी दे दी गयी | लेकिन अपने अनेकों लोकोपकारी कार्यों की वजह से वह अमर हो गया और आज भी लोक गीतों और लोक कथाओं के माध्यम से उसे याद किया जाता है | लोहड़ी के अवसर पर गाया जाने वाला सुन्दरी मुंदरी का यह गीत अत्यन्त प्रसिद्ध लोकगीत है | आइये इस गीत के बोलों को पढ़ें और गीत के ऑडियो का आनंद लें !
 
सुन्दरी मुंदरी होय  
(हे सुन्दरी और मुंदरी)                                                           
तेरा कौन विचारा होए !
(तुम्हारी परवाह कौन करेगा)

दूल्हा भट्टी वाला होए !
(
दूल्हा भट्टी है ना)

दूल्हे दी दीह व्याही होए !
(दूल्हा भट्टी बेटी बनाकर ब्याह करेगा)

सेर शक्कर पाई होए !
(
वो दहेज में एक किलो शक्कर ही दे पाया)

कुड़ी दा लाल पचाका होए !
(
लड़की ने दुल्हन वाला लाल जोड़ा पहना)

कुड़ी दा सालू पाट्टा होए !
(
लेकिन उसकी शाल फटी है)

सालू कौन समेटे होए!
(
उसकी शाल कौन सिलेगा, कौन उसका खोया मान लौटाएगा)

मामे चूरी कूटी !
(
मामा ने मीठी चूरी बनाई थी)

ज़मींदारा लुट्टी ! 
(उसे भी ज़मींदार ने लूट लिया)

ज़मींदार सुधाए !
(
अमीर ज़मीदार ने लड़की का अपहरण कर लिया)

बड़े भोले आए !
(
कई गरीब लड़के आए)

 
इक भोला रह गया ! 
(एक सबसे गरीब लड़का रह गया)


सिपाही पकड़ के लै गया !
(
उसे भी सिपाहियों ने पकड़ लिया, शक था कि वो दूल्हा भट्टी का भेजा हुआ है)

सिपाही ने मारी ईट !
(
सिपाहियों ने उसे ईंट से मारा- प्रताड़ित किया)
 
पावें रो ते पावें पिट !
(अब चाहे रोवो या सिर पीटो)

डब्बा भरया लीरां दा
(तोहफों से डिब्बा भर गया)
                              
ए घर अमीरा दा !
(यह घर सच में दिलदारों का है)

हुक्का भई हुक्का
(इन्होंने कुछ नहीं दिया)

ए घर भुक्खा !
(यह घर कंजूसों का है)

साणू दे दे लोहड़ी !
(हमें लोहड़ी का तोहफ़ा दे दो)

ते तेरी जीवे जोड़ी !
(तुम्हारी जोड़ी सलामत रहे)

     
हमारे तीज त्यौहार इतिहास के बहुत सारे पहलुओं को उजागर करते हैं जो वर्तमान समय में विस्मृत होते जा रहे हैं ! हमारा दायित्व है कि हम इनके महत्व को पहचाने और आने वाली पीढ़ियों को भी इनसे परिचित करायें !



साधना वैद