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Wednesday, September 7, 2016

तुम्हें ही करना है



हर रस्ता अपनी मंज़िल तक जाता है 
मंज़िल की पहचान तुम्हें ही करना है !

लाख प्रलोभन बिखरे हों हर ओर मगर 
सही लक्ष्य संधान तुम्हें ही करना है !

टूटे हैं परिवार सिसकती मानवता 
हर रिश्ते का मान तुम्हें ही करना है ! 

सही ग़लत में बस थोड़ा ही अंतर है 
इस अंतर का ध्यान तुम्हें ही करना है !

पहन  मुखौटे दोस्त मिलेंगे दुश्मन भी 
मित्रों की पहचान तुम्हें ही करना है ! 

अश्रु पोंछने को बहती इन आँखों के 
निज सुख का बलिदान तुम्हें ही करना है ! 

जग को तम से मुक्त कराना यदि तुमको 
तीक्ष्ण गरल का पान तुम्हें ही करना है ! 

छवि धूमिल हो कभी तनिक भी संसृति में 
ऐसा कोई काम कभी ना करना है ! 

कन्धों पर है भार बहुत दायित्वों का 
सबका  बेड़ा पार तुम्हें ही करना है !

दिग्दिगंत में कीर्ति पताका लहराए 
भारत का यशगान तुम्हें ही करना है ! 


साधना वैद




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