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Friday, January 12, 2018

दीप ले आओ



नन्हा सा दीप 
मिटाए जगत का 
अंधेरा घना 

छाँटनी होगी 
ज्ञानालोक के लिए 
मन की धुंध 

गहरा हुआ 
मन का अवसाद 
घुप्प अंधेरा 

जगमगा दो 
मन का कोना-कोना 
दीप ले आओ 

माटी का तन 
कोमल सी वर्तिका 
थोड़ा सा तेल 

देखो तो ज़रा 
जलते ही भगाया 
दूर अंधेरा 

फैला उजाला
निश्चित हुए लक्ष्य  
भागे संशय 

उमंगा मन 
पथ हुआ प्रशस्त 
मंजिल पास 

मन में हुआ 
साहस का संचार 
बढ़ा विश्वास 

नन्हे से दीप 
स्वीकार करो तुम 
मेरा प्रणाम 


साधना वैद 

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